July 27, 2024 9:29 am
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अद्भुत है वृन्दावन का बांके बिहारी मंदिर, राधा कृष्ण दोनों का आशीर्वाद होता है प्राप्त

सोशल संवाद / डेस्क (रिपोर्ट : तमिश्री )- पूरी दुनिया श्री कृष्ण को भगवान् के रूप में पुजती है पर वृन्दावन और ब्रज में उन्हें कान्हा, लल्ला के रूप में पूजा जाता है। कहते है वृन्दावन में श्री कृष्ण का बचपन बीता था। यही कारण है की वृन्दावन इतना प्रसिद्ध है।

यहां का बांके बिहारी मंदिर भी विश्व प्रसिद्ध है। भक्तों का मानना है कि जो भी व्यक्ति यहां पर बांके बिहारी के दर्शन और पूजा करता है उसका जीवन सफल हो जाता है। माना जाता है कि बांके बिहारी मंदिर यहां के मंदिरों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय और मनोकामनाओ  को पूरा करने वाला मंदिर है, तो चलिए आपको बताते हैं बांके बिहारी मंदिर के महत्व के बारे में ।

इस मंदिर का निर्माण 1860 में हुआ था तथा यह राजस्थानी वास्तुकला का एक नमूना है। इस मंदिर के मेहराब का मुख तथा यहाँ स्थित स्तंभ इस तीन मंजिला इमारत को अनोखी आकृति प्रदान करते हैं। बांके बिहारी की यह छवि स्वामी हरिदास जी ने निधि वन में खोजी थी। स्वामी हरिदास जी भगवान कृष्ण के अनन्य भक्त थे और उनका संबंध निम्बर्क पंथ से था। इस मंदिर का 1921 में स्वामी हरिदास जी के अनुयायियों के द्वारा पुनर्निर्माण कराया गया था।

बांके का अर्थ होता है तीन कोणों पर मुड़ा हुआ, जो वास्तव में बांसुरी बजाते भगवान कृष्ण की ही एक मुद्रा है। बांसुरी बजाते समय भगवान कृष्ण का दाहिना घुटना बाएं घुटने के पास मुड़ा रहता था, तो सीधा हाथ बांसुरी को थामने के लिए मुड़ा रहता था। इसी तरह उनका सिर भी इसी दौरान एक तरफ हल्का सा झुका रहता था।

इस मंदिर में बिहारी जी की काले रंग की प्रतिमा है। मान्यता है कि इस प्रतिमा में साक्षात् श्री कृष्ण और राधा समाए हुए हैं। इसलिए इनके दर्शन मात्र से राधा कृष्ण के दर्शन का फल मिल जाता है।प्रत्येक वर्ष अग्रहण मास की पंचमी तिथि को बांके बिहारी मंदिर में बांके बिहारी प्रकटोत्सव मनाया जाता है। वैशाख माह की तृतीया तिथि पर जिसे अक्षय तृतीया कहा जाता है उस दिन पूरे एक साल में सिर्फ इसी दिन बांके बिहारी के चरणों के दर्शन होते हैं। इस दिन भगवान के चरणों के दर्शन बहुत शुभ फलदायी होता है।  बांके बिहारी जी का श्रृंगार राधा और कृष्ण यानी आधी स्त्री और आधे पुरुष रूप में किया जाता है।

श्री बांके बिहारी के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति अपने सभी दुख-दर्द भूल जाता है और उन्हें एक टक बस निहारता ही रहता है। बांके बिहारी मंदिर में एक चीज जो अन्य मंदिरों के मुकाबले अलग है वो है वहां कि पर्दा प्रथा। अगर आपने कभी गौर किया हो तो बांके बिहारी मंदिर में ठाकुर जी के दर्शन हमेशा टुकड़ों में कराये जाते हैं। यानी कि बांके बिहारी जी के आगे बार-बार पर्दा डाला जाता है जिससे कोई भी ठाकुर जी को ज्यादा देर तक न देख सके। इअके पीछे एक बड़ी ही रोचक कथा है। कथा के अनुसार, आज से 400 साल पहले तक बांके बिहारी के मंदिर के आगे पर्दा डालने की प्रथा नहीं थी। भक्त जितनी देर तक चाहे उतनी देर तक मंदिर में रुक सकते थे और ठाकुर जी के दर्शन कर सकते थे।

एक दिन मंदिर में बांके बिहारी के रूप का बखान सुन एक वृद्धा आई जो विधवा और निसंतान थी। वृद्धा आई तो बांके बिहारी के दर्शनों के साथ-साथ अपनी संतान  प्राप्त की इच्छा के लिए थी लेकिन जब उन्होंने बांके बिहारी के मनमोहक रूप को देखा तो वह एक टक देखती ही रह गईं।

ठाकुर जी के रूप को देख वृद्धा न सिर्फ अपने सारे दुख-दर्द भूल गईं बल्कि उन्होंने बांके बिहारी को ही अपना बेटा मान लिया। वृद्धा अकेली थीं और अपार संपत्ति की मालकिन भी थीं। तो उन्होंने सोचा कि अपनी सारी संपत्ति वह बांके बिहारी के नाम पर कर दें। माना जाता है कि उस मैय्या का प्रेम और भक्ति भाव देख कन्हैया भी खुद को उनका पुत्र मानने से न रोक पाए और उनके अकेलेपन को देखते हुए उन्होंने उनके साथ जाने का निर्णय लिया। जैसे ही वृद्धा अपने घर के लिए जाने लगी तभी बांके बिहारी भी उनके पीछे पीछे चल दिए।

जब अगले दिन मंदिर के पुजारी और अन्य लोगों को पता चला तो उन्होंने प्रभु को खोजना शुरू किया और खोजते-खोजते वह वृद्धा के घर पहुंच गए जहां उन्हें बांके बिहारी मिले। तब सभी ने बांके बिहारी से प्रार्थना की कि वह वृंदावन वापिस लौट चलें।

तब कहीं जाकर बांके बिहारी जी मंदिर में लौटकर आए और तभी से हर 2 मिनट के अंतराल पर बिहारी जी के सम्मुख पर्दा डालने की परंपरा की शुरुआत हुई। ताकि दुबारा कोई भी प्रभु को वहा से न ले जा पाय ।

ऐसी मान्यता है जो भक्त बांके बिहारी के दर्शन करता है वह उन्हीं का हो जाता है। भगवान के दर्शन और पूजा करने से व्यक्ति के सभी संकट मिट जाते हैं । बांके बिहारी की पूजा में उनका श्रृंगार विधिवत किया जाता है।उन्हें भोग में माखन, मिश्री,केसर, चंदन और गुलाब जल चढ़ाया जाता है।

बिहारी जी के विग्रह के पास हर रात लड्डू रखा जाता है। क्योंकि बिहारी जी के बाल रूप की पूजा यहां की जाती है। कहा जाता है कि रात में भगवान को भूख भी लगती होगी। हैरान करने वाली बात है कि सुबह वो लड्डू फूटे हुए मिलते हैं।

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