सोशल संवाद/डेस्क : आनंद मार्ग प्रचारक संघ का 70 वां स्थापना दिवस के अवसर पर जमशेदपुर ब्लड सेंटर में A+ एवं AB+ ब्लड ग्रुप का रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया था। ए पॉजिटिव एवं एबी पॉजिटिव के लगभग 25 रक्तदाता इस रक्तदान शिविर में रक्तदान किए। जो भी रक्तदाता रक्तदान किए उन लोगों के बीच प्रशस्ति पत्र एवं पौध देकर सम्मानित किया गया । प्रतीक संघर्ष के अर्जित सरकार एवं ब्लड सेंटर के जी एम संजय चौधरी डॉक्टर एल .बी. सिंह ने लोगों को सम्मानित किया । ब्लड सेंटर में उपस्थित लोगों के बीच लगभग 100 पौधों का वितरण भी किया गया ।
गदरा आनंद मार्ग जागृति में भी धर्म चक्र का आयोजन किया गया धर्म चक्र की समाप्ति के बाद आनंद मार्ग के सुनील आनंद ने कार्यक्रम की शुरुआत की एवं लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि श्री श्री आनंदमूर्ति जी का जन्म 1921 में वैशाखी पूर्णिमा के दिन बिहार के जमालपुर में एक साधारण परिवार में हुआ था। परिवार का दायित्व निभाते हुए वे सामाजिक समस्याओं के कारण का विश्लेषण उनके निदान ढूंढने एवं लोगों को योग, साधना आदि की शिक्षा देने में अपना समय देने लगे। 9 जनवरी सन् 1955 में उन्होंने आनंद मार्ग प्रचारक संघ की स्थापना की।
उन्होंने कहा कि हर एक मनुष्य को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में विकसित होने का अधिकार है और समाज का कर्तव्य है कि इस अधिकार को ठीक से स्वीकृति दें। वे कहते थे कि कोई भी घृणा योग्य नहीं, किसी को शैतान नहीं कह सकते। मनुष्य तब शैतान या पापी बनता है जब उपयुक्त परिचालन पथ निर्देशन का अभाव होता है और वह अपनी कुप्रवृतियों के कारण बुरा काम कर बैठता है। यदि उनकी इन कुप्रवृतियों को सप्रवृतियों की ओर ले जाया जाए तो वह शैतान नहीं रह जाएगा। हर एक–मनुष्य देव शिशु है इस तत्व को मन में रखकर समाज की हर कर्म पद्धति पर विचार करना उचित होगा। अपराध संहिता या दंड संहिता के विषय में उन्होंने कहा कि मनुष्य को दंड नहीं बल्कि उनका संशोधन करना होगा।
उसे हाथ पकड कर उठाना होगा अपने प्रदीप की रोशनी से उसे दीप शिखा को ज्योति करना होगा। अगर कोई अति घृणित कार्य किया है तो उसका दंड उसे अवश्य मिलेगा पर उससे घृणा करके उसे भूखे रख कर मार डालना मानवता विरोधी कार्य होगा। उनके विचारानुसार हर व्यक्ति का लक्ष्य एक ही है, सभी एक ही लक्ष्य पर पहुंचना चाहते हैं अपनी सूझ एवं समझदारी एवं परिस्थिति के अनुसार अलग-अलग रास्ता अपनाते हैं। कोई धनोपार्जन, कोई सेवा का पथ अपनाते हैं, लेकिन हर प्रयास के पीछे मौलिक प्रेरणा एक ही रहती है,शाश्वत शांति की प्राप्ति, पूर्णत्व की प्राप्ति । अगर व्यक्ति का लक्ष्य समान है तो उनके बीच एकता लाना संभव है। आध्यात्मिक भावधारा का सृजन कर विश्व बंधुत्व के आधार पर एक मानव समाज की स्थापना को वास्तविक रूप दिया जाना संभव है।