सोशल संवाद/डेस्क : झारखंड राजनीति की प्रयोगशाला बन चुका है. गत 23 वर्षो में झारखंड का विकास किस गति से हुआ, यह बयां करना मुश्किल है किंतु यहां का बजट बड़ी तेजी से विकसीत हुआ. झारखंड का पहला बजट सरप्लस था, जबकि आज का बजट कर्ज व ब्याज में डूबा हुआ है. वर्ष 2001-02 में झारखंड का बजट 7,101 करोड़ रुपये था. इस वर्ष चम्पाई सोरेन सरकार ने 1,28,900 करोड़ के बजट का प्रावधान किया गया है. यानी 23 वर्षो में 18 गुणा की बढ़ोत्तरी. जिसमें भी लगभग 18000 हजार करोड़ रुपये कर्ज एवं ब्याज चुकाने में चले जाएंगे.
इतनी तेजी से तो सोना का मूल्य भी नहीं बढ़ा. वर्ष 2000 में सोना का भाव 4190 प्रति दस ग्राम था, जबकि आज 64,000 रुपये है. पर्यटन को उद्योग का दर्जा देने की घोषणा हुई है, परंतु नीति अस्पष्ट है. पूर्व की सरकारों ने प्राइवेट इंडस्ट्रियल पार्क की घोषणाएं की थी, किंतु नीति अस्पष्ट होने के कारण एक भी प्रोजेक्ट प्रारंभ नहीं हो सका. अतएव बजट के साथ साथ संबधित प्रस्ताव की पॉलिसी एवं एक्ट का पारित होना भी अत्यावश्यक है, तभी जाकर योजनाएं धरातल पर उतरेंगी.