July 27, 2024 9:44 am
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100 रुपए के नोट में छपी ‘रानी की वाव’ , कहा जाता है उल्टा मंदिर

सोशल संवाद / डेस्क : क्या आपने कभी उलटे मंदिर के बारे में सुना है।नहीं न।पर भारत में एक ऐसा मंदिर मौजूद है जो उल्टा है। जी हा इस मंदिर को सीधा नही उल्टा बनाया गया है। दरअसल ये एक बावड़ी है, जिसे उलटे मंदिर के रूप में बनाया गया है। बावड़ी का नाम है रानी का वाव। विडियो को पूरा देखिये हम आपको ये पूरी कहानी बताते है।

गुजरात के पाटण जिले में स्थित ‘रानी की वाव’ जल संरक्षण की प्राचीन परम्परा का अनूठा उदाहरण है। इस बावड़ी का निर्माण वर्ष 1063 में सोलंकी शासन के राजा भीमदेव  प्रथम की स्मृति में उनकी पत्नी रानी उदयामति द्वारा करवाया गया था। सरस्वती नदी के तट पर बनी 7 तलों की यह वाव 64 मीटर लम्बी, 20 मीटर चौड़ी तथा 27 मीटर गहरी है। दरअसल, बावड़ी का मतलब सीढ़ीदार कुआं होता है।  रानी की वाव’ को उत्तम वास्तुकला का जीवंत एवं बेजोड़ नमूना माना जाता है। यहां की मूर्तिकला तथा नक्काशी में राम, वामन, कल्कि जैसे विष्णु के अवतार, महिषा सुरमर्दिनी आदि को भव्य रूप में उकेरा गया है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 100 के नोट पर भी इसे चित्रित किया गया है।

यूनेस्को ने इसे तकनीकी विकास का एक आलौकिक उदाहरण मानते हुए मान्यता प्रदान की है। इसमें जल प्रबंधन की बेहतर व्यवस्था के साथ ही शिल्प कला का सौंदर्य भी झलकता है। ‘रानी की वाव’ समस्त विश्व में ऐसी इकलौती बावड़ी है जो विश्व धरोहर सूची में शामिल हुई है। यह इस बात का सबूत भी है कि प्राचीन भारत में जल प्रबंधन की व्यवस्था कितनी बेहतरीन थी। यह वाव 11वीं शताब्दी की भारतीय भूमिगत वास्तु संरचना और जल प्रबंधन में भूजल संसाधनों के उपयोग की तकनीक का सबसे विकसित और वृहद उदाहरण हैं।

आपको बता दे बावड़ी की वास्तुकला आपको एक उलटे मंदिर की तरह दिखेगी, जो कि सच है बावड़ी को उल्टे मंदिर की तरह डिजाइन किया गया है, जिसमें सात स्तर की सीढ़ियां हैं जो पौराणिक और धार्मिक कल्पनाओं के साथ खूबसूरती से उकेरी गई हैं। बावड़ी लगभग 30 मीटर गहरी है, जहां की खूबसूरत नक्काशियों में प्राचीन और धार्मिक चित्रों को उकेरा गया है।   बावली के सबसे निचले चरण की सबसे आखिरी सीढ़ी के नीचे एक गेट है, जिसके अंदर 30 मीटर लंबे सुरंग है। ये सुरंग सिद्धपुर में जाकर खुलती है, जो पाटण के काफी नजदीक है। ऐसा माना जाता है कि लगभग 5 दशक पहले, बावड़ी में औषधीय पौधे और संग्रहीत पानी का उपयोग वायरल बुखार और अन्य बीमारियों को ठीक करने में किया जाता था। ऐसा माना जाता है कि पहले इस खुफिया सुरंग का इस्तेमाल राजा और उसका परिवार युद्ध या फिर किसी कठिन परिस्थिति में करते थे। फिलहाल यह सुरंग पत्थररों और कीचड़ों की वजह से बंद है।

पूरी बावड़ी ही मिट्टी और कीचड़ के मलबे में दब गई थी, जिसके बाद करीब 80 के दशक में भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण विभाग ने इस जगह की खुदाई की। काफी खुदाई करने के बाद यह बावड़ी पूरी दुनिया के सामने आई। ये एक रानी के प्यार का प्रतिक है इसलिए इसका नाम रानी की वाव पड़ा।

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